हिंदी हिंदुस्तान की शान है। हिंदी भाषा नहीं,वाणी है; संतों की अनुभूति है; राष्ट्र का स्वर है। यह कबीर के ‘अनहद ‘के रूप में और मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचंद तथा रामधारी सिंह दिनकर जी की भारती के रूप में सर्वत्र प्रसारित हुई। यह प्रासादो की नहीं, संतजनों की झोली का प्रसाद है क्योंकि हिंदी सिर्फ भाषा नहीं एक एहसास है, एक जज़्बात है।
हिंदी है दिल को दिल से जोड़ने वाली भाषा, भावनाओं को बयान करने वाली भाषा। हम बचपन से जिस भारतीय माहौल में पले-बढ़े हैं, उसमें हिंदी में पढ़ना, बोलना, हिंदी में सोचना यह हमारे व्यवहार में शामिल रहने के कारण हमारे अंग-अंग में बस कर हमारे व्यवहार का हिस्सा बन जाती है।
इसी कारण हम बड़ी आसानी से अपनी बात हिंदी में व्यक्त करने लगते हैं। हिंदी की वर्णमाला दुनिया की एक सबसे व्यवस्थित वर्णमाला है। इसमें गूंगे अक्षर नहीं होते, इसी भाषा में रिश्तों की मिठास चाचा-चाची, दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, बुआ, मौसी के नाम से बनती है जबकि अन्य भाषाओं में रिश्ते अंकल-आंटी तक सिमट कर अपनेपन के भाव को, आत्मीयता को समाप्त कर देते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के 45 देशों के 176 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। आज करीब 500 मिलियन लोग हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं जो यही दर्शाता है कि हिंदी का शब्दकोश विस्तृत है। अंग्रेजी में केवल 26 अक्षर हैं तो हिंदी के 52 वर्ग हैं, उच्चारण के आधार पर 45 वर्ग हैं जो 10 स्वर व 35 व्यंजनों में बटे हैं।
गूगल ने भी यह साबित कर दिया है कि इंटरनेट पर भी हिंदी कंटेंट की मांग आज बढ़ने लगी है। फिर भी बड़े दुख का विषय है कि आज भारत में ही रहने वाले हिंदुस्तानी हिंदी भाषी अपनी मातृभाषा हिंदी को छोड़ विदेशी भाषाओं के मोहपाश में बंध कर अपनी शान दिखाता है। उनकी इसी मनोवृति को हटाना है की वह अंग्रेजी के मिथ्या आडंबर को त्याग दें। हमें अपने विचार, दृष्टिकोण, मानसिकता तथा व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा इसलिए हमने ठाना है हम हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन में अपना पूर्ण योगदान दें।
आओ – हम सब मिलकर इस भाषा को दुनिया के दिल में बसाएं, हिंदी को हिंद का ताज, सरताज बनाएं क्योंकि हिंदी में बात है, हिंदी में ही जज़्बात है।