मातृभाषा इंसान के लिए एक पहचान होती है|अगर आपके पास अपनी मातृभाषा है तो समाज में यह समझा जाता है कि वैश्विक स्तर पर आपकी संस्कृति की एक पहचान है, एक वजूद है| आपके पास अपने समाज में अपनी बात उठाने का एक सशक्त हथियार है लेकिन कई बार लोग तथाकथित आधुनिकता के रंग में सभ्य और प्रगतिशील दिखने की चाह में अपनी मातृभाषा को सार्वजनिक स्थलों पर बोलने में शरमाते हैं जो बेहद अशोभनीय व्यवहार है| आज कई लोग भारत की मातृभाषा यानि हिन्दी को बोलने में शरमाते हैं, हिन्दी बोलने वाले को गंवार समझा जाता है| ऐसे तथाकथित लोगों के लिए ही गांधी जी ने कहा था कि  “मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के बराबर है|”

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी,

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी|

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा है-“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय को  सूल”।

अर्थात मातृभाषा के बिना किसी भी प्रकार की उन्नति संभव नहीं है। भारतेंदु जब यह कविता लिख रहे हैं तो वह सिर्फ कवि नहीं बल्कि नवजागरण के चिंतक भी हैं। भारतेंदु उस समय के भारत को जगाने का प्रयास कर रहे थे, जो सोया हुआ था। देश को जगाने की चिंता में उनको ‘निज भाषा की’, मातृभाषा की चिंता हो रही थी क्योंकि मातृभाषा ही उनकी अस्मिता है, उनके पूर्वजों का अनुभव है। इसलिए राष्ट्र का निर्माण बिना मातृभाषा के संभव नहीं हो सकता।

प्राथमिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में वही स्थान है जो मां का है। यह व्यक्ति के जीवन की वह अवस्था है जबकि संपूर्ण जीवन विकास क्रम को गति मिलती है। इस उम्र की शिक्षा जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षा होती है। संभावनाओं से भरी इस अवस्था को सही दिशा उस समय मिल पाएगी जब उसकी दिशा सही हो। सही दिशा से तात्पर्य है बच्चों का शारीरिक, मांसपेशीय, संज्ञानात्मक, बौध्दिक, सृजनात्मक, अभिव्यक्ति और सौंदर्यबोध का विकास। शिक्षा के इन लक्ष्यों को तभी प्राप्त किया जा सकेगा जब बच्चों से उनकी भाषा में बात की जाए। चूंकि शिक्षा बालक केंद्रित होती है और शिक्षक की भूमिका पथ प्रदर्शक की होती है। ऐसे में जरूरी होता है कि बच्चों से उनकी अपनी ही भाषा में बात की जाए क्योंकि इससे बच्चों के स्वाभाविक विकास में सहायता मिलती है। इसलिए मातृभाषा शिक्षा का हृदय है , मातृभाषा के माध्यम से ही जाति की परंपरा, संस्कृति एवं भावनाओं को समझा जा सकता है। अत: यह सामाजिक शिक्षा का अमूल्य साधन हो सकती है तथा इसके द्वारा सभी नैतिक और धार्मिक गुण प्राप्त किए जा सकते हैं। बच्चों के भाव प्रकाशन का मातृभाषा एक सर्वश्रेष्ठ साधन है। विश्व के प्राय: सभी देशों में भाषाशास्त्री हो या विचारक या फिर शिक्षा-शास्त्री, सभी एकमत है की मातृभाषा शिक्षा तथा जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इसलिए हमें हमारी मातृभाषा का प्रयोग अधिकाधिक करना चाहिए |

मातृभाषा का मान हो ,

मेरी मातृभाषा मेरी पहचान हो |